लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (SP) ने उत्तर प्रदेश की कई लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार बदल दिए हैं या फिर से नामांकित किया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव अब तक चुनावी उम्मीदवार की पांच लिस्ट जारी कर चुके हैं। आइए जानते हैं आखिर कौन सी वजह है कि इंडिया गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी सुप्रीमों अखिलेश यादव को बार-बार उम्मीदवारों के नाम बदलना पड़ रहा है?
यूपी की इन सीटों पर सपा बदल चुकी है उम्मीदवार
बदायूं लोकसभा सीट
इस सीट पर सपा ने धर्मेंद्र यादव की जगह अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को टिकट देकर चुनावी मैदान में उतारा है।
बिजनौर लोकसभा सीट
सपा ने पहले यशवीर सिंह को टिकट दिया था, हालांकि बाद में उनकी जगह दीपक सैनी को टिकट देकर चुनाव मैदान में उतारा।
गौतमबुद्ध नगर लोकसभा सीट
समाजवादी पार्टी ने पहले डॉ. महेंद्र नागर को अपना उम्मीदवार बनाया लेकिन चार दिन बाद उन्होंने राहुल अवाना को चुना। तीसरी बाद इस सीट को लेकर सपा ने अपना निर्णय बदला और आखिरकार डॉ. महेंद्र नागर को ही इस सीट से चुनाव लड़वाने का निर्णय लिया।
मेरठ लोकसभा सीट
भाजपा उम्मीदवार और टीवी सीरियल 'रामायण' के अभिनेता अरुण गोविल के खिलाफ पार्टी ने पहले भानु प्रताप सिंह को मेरठ सीट से चुनाव मैदान में उतारा और बाद में अपने निर्णय को सपा ने बदल दिया और अतुल प्रधान को मैदान में उतारा है।
रामपुर सीट पर
सपा के दो-दो उम्मीदवारों ने भरा नामांकन इसके अलावा रामपुर लोकसभा सीट पर भी सपा उम्मीदवार को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है। सपा प्रत्याशियों के रूप में रामपुर और मुरादाबाद सीट से दो-दो प्रत्याशियों ने नामांकन किया है। रामपुर सीट पर आसिम राजा और मुहिबुल्लाह नदवी ने स्वयं को सपा प्रत्याशी बताकर चुनाव नामांकन दाखिल किया है।
मुरादाबार सीट पर
असमंजस ऐसे ही मुराबाद लोकसभा सीट पर सपा नेता रुचि वीरा और मौजूदा सपा सांसद एसटी हसन ने भी स्वयं को सपा उम्मीदवार बताते हुए नामांकन दाखिल किया है। हालांकि सपा ने बाद में नदवी को रामपुर से ओर वीरा को मुरादाबाद से समाजवादी पार्टी का उम्मीदवार घोषित किया।
सपा मुखिया आखिर क्यों बदल रहे उम्मीदवार?
दरअसल, कई लोकसभा सीटों पर नामांकनों को लेकर समाजवादी पार्टी के नेताओं के बीच असंतोष था जिसके कारण कई निर्वाचन क्षेत्रों में सपा उम्मीदवारों को बदलना सपा मुखिया अखिलेश यादव की मजबूरी बन गई थी। ऐसा माना जाता है कि सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पार्टी कार्यकर्ताओं की चिंताओं के जवाब में ये बदलाव किए हैं, क्योंकि इनसे आम चुनावों में नुकसान होने की आशंका थी।
भाजपा के खिलाफ सपा मुखिया की चुनावी रणनीति
भाजपा का हिंदुत्व कथा का मुकाबला करने के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और दलितों को एकजुट करने का लक्ष्य सपा मुखियाअखिलेश यादव ने रखा है। समाजवादी पार्टी एसपी ओबीसी के बीच समर्थन मजबूत करने के साधन के रूप में "सामाजिक न्याय" पर जोर देने की कोशिश कर रही है। इसके अलाावा सपा दलित समुदाय के भीतर अपनी अपील को व्यापक बनाने की कोशिश कर रही है।
सपा के ये पिछले प्रयोग रहे असफल इसलिए...
हालांकि सपा उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोकने के लिए कई प्रयास किए हैं, जिसमें वो असफल रही है। जैसे 2017 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ और 2019 के आम चुनावों में अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वी बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ी और ये प्रयोग सफल नहीं हुआ। ये ही वजह है कि सपा इस बार उममीदवारों को लेकर काफी सतर्क है और उम्मीवारों का चयन करते समय फूंक-फूंक कर कदम रख रही है।